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(आभार राजस्थान पत्रिका)

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रूत सतसइ

गिड़ा
गिड़़ा पड़ै सरदी घणी, हुवै फसल बित हांण।
बाज्यां ऊपर वायरौ, जीवां मुसकिल जांण।।508।।

ठंड करारी कारमै, सीतल नमी निहंग।
नीर बरफ बण ौसरै, मारै गिड़ा विहंग।।509।।

अणगिणती रा औसरै, आय गिड़ा आवेस।
फसलां जीवां घण जगां, करदै तेस र नेस।।510।।

थर चाढ्यौ पड़ पड़गिड़ा, जावण फशलां जोग।
जांणक धर चादर धवल, ओी फसलां सोग।।511।।

निजरां आवै चौतरफ, हुवौ गिड़ा थल थांन।
धवल चादरौ ओढियौ, धरा बरफ उनमामन।।512।।

धुंद
के आंधी के मेह सूं, इला जेम अंधलाय।
सीयालै मावठ हुवां इसड़ी धंवरां आय।।513।।

धुंद हूंत ढकियौ थकौ, इसड़ौ सूर प्रभाव।
गौरी काठै घूंघटै, ज्यूं ना मुख दरसाव।।514।।

धवल धुंद छाई धरा, पुसप पीत प्रभपास।
दूध सुवाड़ी गावड़ी, ज्‌ूयं झांई पीलास।।515।।

रिव दरसण होवै इयां, फाटण लाग्यां धुंद।
घूंघट झीणै गोरड़ी, ज्यूं दीखै मुख चंद।।516।।

छाई धरती ऊपरा,ं धवल अंध मिल धुंद।
बगत कलेवै ना हुवै, दरस गिगन रिव मंद।।517।।

जीव जीनावर मांनखै, कांई रही जिनात।
लुकियौ धंवरां डर सरद, बयल देव परभात।।518।।

रूत सिसिर आवण सुणी, आयौ मावठ बीर।
भूमण्डल नै ढाल दी, राल धुंद रौ चीर।।519।।

आघी बैतां धुंद रै, इम रिव नभ दरसंत।
अलगी विपदा रै हुवां, ज्यूं नर मुख मुलकंत।।520।।

चमक ओस पांनां तणी, रजनी गई सिधाय।
जांणक रिव सनमांन में, मोती दिया बिछाय।।521।।

धांन पांन रै ऊपरां, ओस बूंद पलकंत।
जांणक मोती नीपज्या, करसै करसण तंत।।522।।

ओपै बूंदा ओस री, डटी कैरटै डाल।
जांणक थुड़ता प्रात निस, बिखरी मोती माल।।523।।

ओस बूंद तर डालियां, ओप डटै आपांण।
जांणक फलिया रूंखड़ा, निसा सिसिर रै पांण।।524।।

चमक ओस बूंदां तणी, आबा देवै एम।
ओढ्यौ धरती ओरणौ, जड़ियौ मोत्यां जेम।।525।।

पांणत
तरसावै बिजली तदिन, झपका देती जाय।
करतां पांणत करसणी, कायी करदै काय।।526।।

जावण सारू आवणी, बिजली करसां हेत।
रात्यूं दे सीयां मरै, खोडा पावण खेत।।527।।

धांणां आई मोगरी, सौरभ रही खिंड़ाय।
काची काची खावियां मगज जोर बध जाय।।528।।

पुटपुटियां दांणां पड़ै, चिणा साग घण चाव।
सेकण होला सांतरा, माघ उतरतै लाव।।529।।

सात वार पांणी पिवै, नामी खात नकार।
गेहूं वाली डांगिया, ओप रही इकसार।।530।।

लाखौ पड़नै रायड़ौ, फली भार लुलजाय।
मांन पाय ज्यूं चतुरनर, लुलताई इधकाय।।531।।

सूरमुखी सरसूं तणा, पीला सुमन खिंडाय।
सुमन नैनक्यां बेंगणी, झीरै साख सवाय।।532।।

जीरौ धीरौ ही बधै, मूंघै मोल बिकाय।
आडौ करसां आवियां, मोकल रोकड़ थाय।।533।।

जल जीवण सह जूंण रौ, मोटपा सका न माप।
अन निपजै अनगिणतरौ, पांणत रै परताप।।534।।

हरियाली आबा इसी, पीवल धरा पिछांण।
ओढ्यां हरियल ओरणौ, सूती ज्यूं धर जांण।।535।।

पतझड़
अलगौ हुवतां रूंख सूं, दुमनौ पत्तां दोर।
पवन बिछोवा कर दिया, पाछा मिला न ओर।।536।।

जाम्या सोतौ जावसी, अटल थी आ बात।
आंणा जांणा जगत में, परम सत्ता रै हाथ।।537।।

पीला पत्ता रूंखडां, आयौ पवन उडीक।
खिणखिण खिणखिण बाजतां, देखै जीवण सीख।।538।।

पीला पत्ता बिछड़तां, रूखे दुखी घण होय।
साथ रह्या इतरा, दिनां छोड गया क्यूं मोय।।539।।

आंा जांणा जगत मां, बणिया परकत दोर।
पांन कयौ म्हारी जगां, आसी कूंपल और।।540।।

छिण पलक घड़ी दिवस पख, मास बरस जुग मांण।
ऊमर सारू जीवरौ, जीवां रौ धर ठांण।।541।।

दुमनौ दरखत होव मत, आवै फागण मास।
देख ंरग मुरधर तणा, व्है जीवण विसवास।।542।।

पांनां हीणौ रूंखड़ौ, लगै अडोलौ एम।
बसरत हीणा बालक्या, आब न पावै जेम।।543।।

पीला पत्ता रुखड़ा, इमखिर अलगा जाय।
स्वारथ मिटियांस्वारथी, ज्यूं दै चीज बगाय।।544।।

पत्ता खिर खिर रुंखड़ां, घेर्या आंगण द्वार।
कामण थकी बुहारती, दिन में दस दस बार।।545।।

पचकुपच
हलकौ लूखौ सिसर रूत, बेसी बासी ठार।
भोजन नांही खावणौ, बात बदावन वार।।546।।

पिपली अवर हरीत की, सेवन करौ मिलाय।
मैदा री चीजां बणी, इण रुत लेवौ खाय।।547।।

डांफर सूं बचणौ अवस, लगतां फाटै होठ।
कफ संचय री बगत आ, बेवां दरत हटोट।।548।।

ऊंडौ वड़नै सोवणौ, सखरौ व्है सहवास।
घण जल सीतल पदा रथ, मत लावौ रैवास।।549।।

खीर उड़द सीरौ दही, मालपुवा गुड़ दूध।
चावै माल निरोग तन, आवै ताकत कूद।।550।।

मजबूती दिल फेफड़ा, चंगा हाडक चांम।
सूर नमन व्यायाम कर, जावै परौ जुखांम।।551।।

बसंत
जगत चराचर जीवड़ां, तकड़ौ तन मन तंत।
मसती उमंग मांनखै, वाड़ी आय बसंत।।552।।

आयौ धरां दिसावरां, कोडायौ घण कंत।
मेल करायौ पीव धण, मुरधर आय बसंत।।553।।

दहै टहूका कोयलां, मन मोवै रिख संत।
मनसिज भभकै मांनखै, व्हाली घणी वसंत।।554।।

दहै चकारा सूवटा, ठौड़ न हिक बैठंत।
करिया हरियल रूंखड़ा, मुरधर आय वसंत।।555।।

वेस नवादा वीनणी, पैर हुवै अड़िजंत।
कांण नै दांमण करी, मुरधर आय वसंत।।556।।

परस करै तन वायरौ, रोम रोम हरखंत।
तन निरोग नर नारियां, मुरधर तणै वसंत।।557।।

सीयालै बिल संचरै, इब छांडै विसदंत।
निरखण बारै नीसरै, मुरधर तणी वसंत।।558।।

काची काची कूंपला, हिरणी धाप चरंत।
निरखै भरती चोकड़ी, मुरधर तणी वसंत।।559।।

तेज लागमौ तावड़ौ, बिन वायरियै धाप।
फागण में सरदी रहै, पवन तणै परताप।।560।।

जातौ करै जवारड़ा, सरदी हंदौ दोर।
सरदी रौ सिव रात नै, एक वलाकौ और।।561।।

तपणौ दिन रा तावड़ौ, रहणी सीतल रात।
वाजै सीतल वायरौ, फागणियै परभात।।562।।

फागण आवै फुदकती, मुरधर मांय वसंत।
पावै कंतौ कांमणी, इधकौ तन मन तंत।।563।।

लुलियोडी पतली कमर,तन परसेवौ आय।
खेतां वाढत रायड़ौ, धण मुख लाली थाय।।564।।

परसेवौ मुख कांमणी, आब तपत तन तंत।
जांणक सतदल ऊपरां, ओस बूंद पलकंत।।565।।

तेज पवन रज विखरतां, आब धरा इम झाल।
जांणक कंतौ कामणी, रालै हरख गुलाल।।566।।

आई तेजी वायरै, लावै रेत उडार।
जांणक थक रुत फागणी, खेले फाग वकार।।567।।

बांधै चौरासी पगां, घूघरियां घमरोल।
ढमकै ठमकै ढोल रै, करवै नाचकि लोल।।568।।

सांग रचावै सांतरा, आवै मनां उछाव।
बूढां में ई जा वडै, फागण हंदा भाव।।569।।

बींद बणै फागण अवस, बिन परण्यां मोट्यार।
सांग बीनणी रौ बणण, के ई इसकी त्यार।।570।।

फागणियौ ओढ्यां फिरै, चढियौ जोबन छोल।
बीनणियां रौ झूलरौ, गीतां री घमरोल।।571।।

जीव जिनावर दरखतां, लगी बसंत बयार।
रग रग में वड़ियौ रमै, फागणियौ नर नार।।572।।

टाबरियां गैरां रमै, भर पिचकारी रंग।
भांत भांत रा रंग सूं, ओप रह्या घण अंग।।573।।

देवर भाभी कोड सूं, रालै रंग गुलाल।
हुयगा राता रंग सूं, गरक गुलाबी गाल।।574।।

होली रमतां रंग सूं, देखौ भीजी देह।
इधकौ प्रगटै आंगणै, नणदल भाभी नेह।।575।।

भीजी भीतां आंगणा, चोल रंग व्है चौक।
होली रौ रंग छावियौ, घरां हवेली गोख।।576।।

अपणायत प्रगटै इधक, आछौ आपणचार।
मेल बधावै मांनखै, होली तणौ तिवार।।577।।

हिलमिल रहणौ मांनखै, आणौ सब रै कांम।
होली जीवण च्यार दिन, रमौ नहे धर धांम।।578।।

ढमकै ठमकै ढोल रै, चाल गुरावै चंग।
नेह देह नर नारियां, रचियौ फागणरंग।।579।।

रीतां राजस्थान री, चंगी राखण प्रीत।
नारी चंग बजाणियै, अमर करै गा गीत।।580।।

कांकड़
ओढ जेम संजोग मे, चोल ओरणौ बे'र।
फूलां सूं, लदिया फबै, इब मुरधरिया कैर।।581।।

तुग्गा निकलया द्वार सूं, फूलां बिच मा थोथ।
रस चूंसै मोमाखियां, कैर फूलिया ओथ।।582।।

फटकारा दै फूंदिया, करती जूंणी केल।
रस चूंसै रसिया भ्रमर, मुरधर फूलां मेल।।583।।

आजीजी रुतराजजरी, आयौ बाट अजेज।
छाया फूला कैरटा, हुवां बसंती हेज।।584।।

फूलां राता कैरटा, ऊभा इम दै आब।
जेम उडीकै कंत धण, लेवणजोबन लाब।।585।।

काचा काचा कैरिा, तोड़ै कामम कोड।
कूटौ ससवदौ करै, हुवै न इणरी होड।।586।।

परदेसां मूंघम करै, मुरधर हूंत मंगा'र।
घालै सहरां गांव में, कैरां तणौ अचार।।587।।

वैगी ऊठ भरवावटै, तोड़ण कैरां त्यार।
दारां करलै दांतला, जूंझै कांकड़ जा'र।।588।।

बेपारां रै तावड़ै, बहै पसीनौ गात।
कांटा खुभ खुभ फाटिया, उरड़ाटां सूं हाथ।।589।।

करै पसेवौ रगत रौ, मुरधर कामण झेर।
कांई निगै दिसावरां, कीकर तूटै कैर।।590।।

कोमल कोमल कूंपलां, काढी खेजडियांह।
हरियल आबपा हूचटै, छबी छलीली छाहं।।591।।

सीयालै छांगी थकी, खेजड़िया खंखेर।
कंत बसंत आवण सुम, हुयगी हरियल च्हेर।।592।।

ओठारु अरड़ावता नखै खेजड़ी आय।
खाय'र काचा लूंग नै, भचकै भूख मिटाय।।593।।

छांगण लूंग'र छाहड़ी, घण खेज़ड़ विसवास।
रिंदरोही मां एक थूं, ऊभी थलवट आस।।594।।

खेजड़ियां मिमझर खिली, रै छायौ रुतराज।
चैत मास घम चावना, आछी लागै आज।।595।।

ताम्बा वरणा पांनड़ा, कूंपल नवी नकोर।
चैत मास मां नीम्बड़ौ, गुण कारी सेंजरो।।596।।

सात पांन नित नेम सू, खा पखवाी हेक।
रोग न तन में वापरै, भाखै ग्रन्थ उल्लेख।।597।।

निंमझर छाई नीम्बड़ै, सौरभ रही खिंडाय।
अंजण करियां आंख रै, रोग न नैड़ौ आय।।598।।

खेरणकूंता बंवल रा, आय नखै एवाल।
खावण में उंतावली, गाडर टाटां भाल।।599।।

फबै चैत मां फोगड़ौ, जांणौ थलवट जोग।
हुयवै रायतौ फोगलां, ससवादौ'र निरोग।।600।।

ऊभा हरियल आकडा, इकडोड्या सूं झेर।
राजी रह सिवर्जी करै, मुरधर ऊपर महेर।।601।।

पंची कैर भखावटै, कांकडा भोल किलोल।
ढाली फिरती डोकरी, बरस साठ ना मोल।।602।।

लावै लेवै डोकरी, गा हरजस हर भांत।
वाजै तनां सुहावतौ, वायरियौ परभात।।603।।

एकल ढाली आयगी, रिंदरौही रै मांय।
जेम विसाई लेण हित, टापु सागर थाय।।604।।

गिणगौर
जोडी आछी होवियां, जीवण हरखै जोर।
पूजै छोर्यां झूलरौ, घण मन सूं गिणगौर।।605।।

घर में मांड्यौ गोखड़ौ, सिव पारवती साथ।
काली राती टीकियां, पूजण छोर्या हाथ।।606।।

मांजै कलस पवीत जल, लाय दोबड़ी साथ।
छोर्यां हंदा झूलरा, गावै गीतां पाथ।।607।।

घूमर घालै फेकं जल, हरखत मनां हरोल।
आछा लागै आंगणै, बाईसा रा बोल।।608।।

वाट सेक नै लापसी, दाणा खुलतौ दोर।
करिया तेवड़ कांमणी, सिझारै गिणगोर।।609।।

साथै सिवजी गोर रै, पैल लगावै भोग।
जीमै पाछै कंत धम, गिणगोर्यां घण जोग।।610।।

मेंदी हाथां मांडतां, कारीगरी दिखाय।
राती ेड्यां ूपै, मेदी रेख बणाय।।611।।

बूढी प्रोढी बीनणी, जातां करै न जेज।
कांमणीयां नै कोड घण, सिझरि रे सेज।।612।।

खाणौ खुराक
रुत बसंत रै आवियां, कफ रौ हुवै उठाव।
कसरत करणौ घूमणौ, देहां आछौ दाव।।613।।

जल गुणगुणौ न्हावियां, रहवै अवस नचीत।
चंदण केसर लेपकर, न्हायां पाछै मीत।।614।।

बथुआ परवल करैला, सहजण लोकी साग।
घिया तरोइ कैर रौ, लिखियौ आछै भाग।।615।।

जूना आछा जौ गहूं, राई अवर मसूर।
सैत खावमौ सांतरौ, देहां बरसै नूर।।616।।

उड़द दूध आलू दही, खिचड़ी चिवड़ी खांण।
काढौ आठौ सूंठ रौ, दिन रा सोयां हांण।।617।।

सितोफलासव दाखसव, दाड़िमसव हित देह।
दसमूलारिस्ट ही अवस, वपरालैणौ गेह।।618।।

ऊन्हालौ
तपवा लागै तावड़ौ, ठंड हाव में नांय।
धरती पेंड उंतावला, मुरधर ग्रीखम आय।।619।।

खेजड़िया रै लटकती, हरियल सांगरियांह।
तड़ौ लेयनै तोड़ती, कांकड़ कांमणियांह।।620।।

सीतल हवा सुहावती, परस देय तन तंत।
मास बेसाख साकलै, बपालौ आछौ पंथ।।621।।

रुंखड़ा
नीमझ पाकी नीम्बडै, कूंता बंवल पकाय।
कैरी आम्बै पाकती, हीडै पवन पसाय।।622।।

पीलू छाई प्रती प्रभ, गूंदी कैसरियांह।
कोड करंता टींगरा, खावै ऊभा छांह।।623।।

पातडियां पीली पड़ी, आी पाकण आस।
अंग्रेजी बांवल रहै, हरियल बारूं मास।।624।।

पीप्यां छाजै पींपली, नींबोली घण नींम।
आम्बै कैर्यां इधकता, रालै हवा धड़ीम।।625।।

खोखा पाक्या खेजड़ी, हरियल लूंग मिझांन।
पत्ता हीणी बोरड़ी, खिखिराय बांवल पांन।।626।।

त्यारी ढाल बणण री, कैर करावै कोड।
टाबरियां री टोलियां, आसी रम्मत छोड़।।627।।

बड़लै री छायां धणी, पत्ता मोटां पांण।
लेय बिसाई मांनखौ, बेपारां घण जांण।।628।।

नारी
ऊठ साकलै नारियां, सीचै रूंखां नीर।
चुगौ उछालै पंछियां, धीजै धरम सरीर।।629।।

रिच्छा परियावरण री, बडका की घण मांन।
भारत हंदी संस्क्रति, जग मं मोटी जांण।।630।।

तिस रूंखां'र जिनावरां, धरियौ बडका ध्यांन।
सदलां पांणी सिंंचणौ, छीकौ पंछ्यां छांन।।631।।

रूंखां री रिछ्या कियां, रिच्छा मिनखां होय।
समझवांन बडका थया, रखी ागली सोय।।632।।

बड़लौ पींपल नीम्बड़ौ, तुलची नै घण कोड।
निसदिन सींचै नारियां, दीतवार नै छोड।।633।।

पांणी सींचै पेड़ नूं, ऊगंतै परभात।
पुन खातर रालै चुगौ, झाझी नारी जात।।634।।

तलतलीजै नारियां, दलद दुख मन दाज़।
ग्रीखम में दोरौ घणौ, करणौ चूल्लै काज।।635।।

तव तावड़ भीतांतपत, चवै पसीनौ चांम।
धण तप चूल्लै आगलौ, करमौ दोरौ कांम।।636।।

ग्रीखम चिपियौ घाघरौ, चिप चिप ऊनौ चीर।
कचबचयोड़ी कांचली, धण परसेवै धीर।।637।।

ऊना हुयगा ऊबटण, गैणौ दै गरमास।
क्रीम पावंडर कामणी, कमही ग्रीखम रास।।638।।

मांग पसेवै माह्लती, नारी ढूकै नाक।
काजलियौ गालां कनै, तरतर रहियौ ताक।।639।।

हैडौ लीवै बारणौ, पीव गया परदेस।
रांधै तपती रोहिण,ी नार अमूझण नेस।।640।।

जेठ मास जोरावरी, रोयण तप रालंत।
दीखै आमम दूमणी, कांमणियां बिन कंत।।641।।

दालद घर दोलौ फिरै, घीणा री ना धार।
बासी टुकडा छाछ सूं, गिटै लगावण नार।।642।।

पंखेरू
कर गुटरगूं कबूतरा, जोह जतावै जूंण।
चिड़ी कमेड़ी मोरिया, चुगै ढेलड़ी चूंण।।643।।

चुगौ चुगण नै मोकली, ढेलडिया री ढूक।
हरखै देख'र मोरिया, जागै मनसिज भूख।।644।।

मसती नाचत मोरिया, लहै चुगौ ना नांम।
जीव चराचर नै जगत, इसौ सतावै कांम।।645।।

मगन होविया मोरिया, चुगौ भूलगी चांच।
ततपर छत्तर तांणिया, नेगमरहियौ नाच।।646।।

तिरसा मरता कागल, जाय तलावां सींव।
टींटोड़ी टिव टिव करै, देख्यां कुबदी जीव।।647।।

करती गुंज कमेड़ियां, सहवै ग्रीखम दोट।
चक चक करती चिड़कली, लीवी छीयां ओठ।।648।।

जीव चराचर नै जगत, ग्रीखम लेवै ढाय।
दोपांरा रै तावड़ै, पंखेरू लुंक जाय।।649।।

दिन
बगत कलेवै वापरै, तप सूरज रौ तेज।
बेपारां हालत बुरी, जोखौ जांण अजेज।।650।।

पांणीमटकी ऊकलै, गलै ऊतरै नांय।
दोपारां में दीवड़ी, पीवण जोग रखाय।।651।।

रोटी बगातं तपत रिव, जोरां खावै जोस।
दोपारां रै तावड़ै रै खावै घम रोस।।652।।

दीजै पौरां तावड़ौ, करबा दै ना कूंच।
पेंडौ करतां मिनखरी, करदै हेटी मूंछ।।653।।

तावड़ड की हलकौ पड़ै, ठंडा पौरां ठीक।
करमा सूझै कांमड़ा, चारा द्रावां पीक।।654।।

गांमां में ग्रीखम घुरै, टांमां देय सटीक।
कांमां नांमां सूझ कम, रहवै दामां फीक।।655।।

बगत आरती वापरै, जीव ठिकांणै जीव।
भाड़ौ काया देण नै, करलै ब्यालू पीव।।656।।

रात
भीतां तापी सेंग दिन, सिंझ्या दे हूड़ास।
तावै घर घर रात दिन, ग्रीखम रौ गरमास।।657।।

आय'र बैठा आंगमै, भींता च्यारूं मेर।
जांणक घिरियौ जीवड़ौ, रिप ग्रीखम चौफेर।।658।।

सेजा दोरौ सोवणौ, नींद हुई नाराज।
विरहण हीयै दाझ ज्यूं, तपै गूदड़ आज।।659।।

तारा गिम गिण तड़फणौ, हिलै पंखियां हाथ।
यूं पसवाड़ा फेरतां, बीतै आधी रात।।660।।

नींद आवती ऊचटै, ग्रीखम देय झपीड़।
झिझकै सूतौ जीवडौ, भोगैतन मन पीड।।661।।

आखी रातां ओझकौ, दिन ना सोवण देय।
हांण पुगावण मांनखै, ग्रीखम लावौ लेय।।662।।

तड़कै सांयत वापरै, नींद सुहती आय।
डर दिन रौ आगूंच ही, झपकै देय जगाय।।663।।

सहरी जीवण
मनां घुटण अमूझ तन, सहरां सांकड़ भीड़।
मावै नांही मानखौ, तावै ग्रीखम पीड़।।664।।

निस दिन रहै उड़ीक जल, काया कर कर आय।
पैली पाणी भरण पख, नार्यां थड्डा खाय।।665।।

भिड़ै चरी भांडा भरण, रांडां रांडा गाल।
जांदा पांणी रा जबर, घांदा ग्रीखम चाल।।666।।

आवै कदै इकांतरै, कदै पांतरौ पाय।
पांणी मीठौ पीण नै, सहरां जबरौ ताय।।667।।

बिजली रै आयां बिना, कूलर पंखा बंद।
जीव अमूझै सहरियां, फैल्यां ग्रीखम फंद।।668।।

गैसांघुटगी गिगन धर, परदसूण परभाव।
भांत भांत रा रोग तन, घालै मिनखां घाव।।669।।

गलिया फेली गंदगी, मेली सड़का मोड़।
सासण ढीलौ संचरै, नेतावां री खोड़।।670।।

मावै नांही मोटरां, ना रेलां में मीत।
वधियां इणविध मांनखौ, नी रह सकां नचीत।।671।।

मांग घमी पैदा कमी, जमी न बधवा जोग।
समझ बात ना सांचरै, इसा निसरड़ा लोग।।672।।

मौसम माफक घर वसै, पय सीतलण घण पीण।
साधन धनिकां सांतरा, जीवण ग्रीखम जीण।।673।।

दुख पावै ग्रीखम दिनंा,दोयम दरजै लोग।
साधन कमती वापरै, जीवम कड़की जोग।।674।।

तीजै दरजै तड़फणौ, कमती मिलै पगार।
दोरप घर अर देनगी, लागी ग्रीखम लार।।675।।

तप तावै सूरज तणौ, कोकल खावै कांन।
जीवण झुग्गी झूपड़ी, सहर सजा उनमांन।।676।।

गंदा नाला सहर रा, देय रह्या दुरगंध।
जीवण झुग्गी झूंपड़ी, फसियौ इसड़ै फंद।।677।।

ऊंट
धोरां धरती धीजतौ, तपतौ तावड़ ताप।
ओठारूं नांही अड़ै, छिता जमावण छाप।।678।।

ढांण पड्यौ नांही ढबै, रेचक ऊनी रेत।
जरणा थलवट जाजरी, चिंतव राखौ चेत।।679।।

आंधी सूं तपती अनै, बिरखा सरद बिचाल।
सह रितुवां में सांतरौ, ऊंठ कमावण वाल।।680।।

कैर बांटका खेजड़ी, खा भर लेवै पेट।
आंण जांण'र कमांण नै, साधन थल पाकेट।।681।।

कलजुग में कीमत कला, अस वेल्यां अद नांय।
अद ऊंटा री आज लग, केई लोग कमाय।।682।।

एवड़
खोखा खिरता खेजड़ी, गाडर खाथी वेय।
चालण टाटां चांचली, दो पग आगै देय।।683।।

तरवर नखै तलाव में, छियां सांगणी वेय।
एवड़ नै ऐवालिया, आय बिसाई लेय।।684।।

हाथां गेडी हांडतौ, टोलै गाडर टाट।
घाली खाखां दीवड़ी, झेलै लूवां झाट।।685।।

बालपणा सूं बारमै, फिरणौ, बारूं मास।
हेवा व्है एवालिया, सगली रितुवां रास।।686।।

लूवां
पूरी ग्रीखम धोलपुर, जबरौ तप जैसांण।
सेखावटी सांचरै, ग्रीखम रौ घमसांण।।687।।

जाचण आवै जोधपुर, नावच करै नागरौ।
बिकांणौ बिड़दावती, गत लूवां घम घोर।।688।।

ढील कठै ढूढाड़ नै, मुलक जाय मेवाड़।
हांडै हाडाती धरा, लूवां हंदी राड।।689।।

गांवेजड्ज घुरावतौ, छैलाई रौ छंद।
मुरधर चंगौ मांनखौ, लै ग्रीखम आणंद।।690।।

थांनक लूवां रा थया, थुड़वा इधका थाट।
थाह लेणबा थलवटां, जबरी देवै झाट।।691।।

धजवड़ लूवां सेनधक, तपत धवल तप ताज।
धीरज धीरप धोरियां, आयौ देखण आज।।692।।

धोरां ग्रीखम धाड़वी, धाड़ा पटकण धाह।
लूवां ससतर लेयनै, अंगां गजब उछाह।।693।।

रूडौ ग्रीखम राजवी, लूवां ससतर लेय।
रीठ बाजौत रात दिन, रै छांनौ नी रेय।।694।।

सूनी सड़कां सहर री, सूना गांव गवाड़।
लूवां जीवां नै लिया, वासै ऊंडै वाड़।।695।।

रूड़ा रूपक रंग वप, करवा कबजै कार।
सत देखण मरू सुन्दरी, रांचै लूरुलियार।।696।।

लूवां राजस्थान में, दौड़ रही दाछंट।
दुख देवाली दूठली, चेतै चौकस चंट।।697।।

चाला लूवां चाल सूं, चिंतव चेता चूक।
ढबक ठाहरां ठीमरां, कहर मचाई कूक।।698।।

केड़ौ ग्रीखम कांकड़ां, छेड़ौ रहै न छांह।
बालै मुरधर मांनखै, लूवां री लपटांह।।699।।

तिरसी नाडी तलतलै, रूंखां लुकती छांह।
बगसै नांही जीवड़ां, लूवां री लपटांह।।700।।

ओठै पंछी अद्रियां, चुगौ चुगण नीं चाह।
झपटां मारै जोर री लूवां री लपटांह।।701।।

भेस्या फिरणौ भूलगी, गऊ नहीं अगवाह।
छीयां बैठी ने तलै, लूवां री लपटांह।।702।।

भूखी तिरसी हिरणियां, बैठी खेजड़ छांह।
भूली भरमऔ चौकड़ी, लूवां री लपटांह।।703।।

रांचै कांकड़ रोझड़ा, तिरसाड़ा मरताह।
अंग बचावै ओठ में, लूवा री लपटांह।।704।।

लुकगा लूंकी स्यालका, इसा गुसाली मांह।
डरता दरड़ै चापलै, लूवां री लपटांह।।705।।

सुसिया कैरां साकड़ै, के फोगां रै मांह।
डरता दरड़ै चापलै, लूवां री लपटांह।।706।।

बैठा भूल्या बोलणौ, ऊंडा कै मांह।
तलै तीतर बटेर नै, लूवां री लपटांह।।707।।

लाम्बी काढी लकलकी, ठायै हेक न ठाह।
इधक सतावै स्वान नै, लूवां री लपटाहं।।708।।

ठायौ करण ठाडोल में, मिन्नी तणा मताह।
मंझारी ब्याकुल थई, लुवां री लपटांह।।709।।

चख चौवे जल ढींगलै, छींकौ रूंखां छांह।
डरपै चिड़िया पीवती, लूवां री लपटांह।।710।।

वायरियै रै परसतां, लागौ काया दाह।
ऊभी व्है रोमावली, लूवां री लपटांह।।711।।

कायी व्हैगी कनपटी, सहन करण सत नांह।
बालै आतां बारणै, लूवां री लपटांह।।712।।

गरम तवौज हथेलियां, बलै कलाई बांह।
करिया सूना कांनड़ा, लूवां री लपटांह।।713।।

गरम हुवौड़ा हाथ पग, सीनौ कड़ जंघाह।
ताव जियां तनड़ौ तपै, लूवां री लपटांह।।714।।

बलती सूं इब बचण नै, किसा उपाव करांह।
दोरी करदै मुरधरा, लूवां री लपटांह।।715।।

भींतां तावड़ भड़ तपै, दोरौ दिवस घरांह।
जाया ंबारै झांपलै, लूवां री लपटांह।।716।।

तड़फावै अबला तनां, अर मोट्यार नरांह।
बालै बूढ़ां बालकां, लूवां री लपटांह।।717।।

लूवां कारण लेवणा, सोरा नाही सास।
फेंके बलबलती हवा, विद्युत, पंखा वास।।718।।

फीकी व्ही तारा खिंवण, आभै ग्रीखम ओक।
मधसी पड़गी चानणी, लूवां कारण लोक।।719।।

सरवर नाडी सूखगा, घरां विसुखी गाय।
बलती लूवां बाजतां, लूवां कारण लोक।।720।।

दूध आकड़ै सूखगौ, दूध भेंस कम देय।
देखौ लूवां दौड़ती, लोकै लावौ लेय।।721।।

बल बल लूवां बाफसूं, रीस करै घणरेत।
उरबाणा-बाल'र पगां, कर देवै बेचेत।।722।।

लूवां रस कम खोसियौ, दै तरकारी दाग।
लागै कीकर लोगड़ां, ऐ ससवादा साग।।723।।

बेंगण भींडी टींडसी, तरकारी बेतंत।
तोरूं अर तरकाकड़ी, लूवा धकै लुलंत।।724।।

हरी भरी तर बाड़ियां, कमावणी कुसलात।
लूवां तणै लड़ीड़ सूं, बलगी हाथौ हाथ।।725।।

फटफटियोज चलावतां, त्यारी राखण तौर।
दपटां कानां कनपटी, झपटां लूवां जोर।।726।।

घट गरमी बालै घणी, तिण पर लूवां तीर।
परस हवा रौ पावतां, सिलगै जांण सरीर।।727।।

दोपारां तीपोर रा, सिंझ्या रा सें पोर।
लूवां आधी रात लग जेठ महीनै जोर।।728।।

हाकां बाकां होयगी, हेवा देण हचीड़।
हीया फाडै हांफणी, लूवां तणै लडीड।।729।।

हाक्या बाक्या होयगी, हां करतां नर हांम।
हिचै हठासी होपरां, लूवां बिना लगांम।।730।।

जेठ मास पेंडौ करै, लूवां मग सेलंग।
सांई सेती सावतौ, नहीं मारगू अंग।।731।।

तपती लूवां तावड़ै, फसै फिराकू फेंट।
रसतै मांही राखदै, जाच्यां पेंडौ जेठ।।732।।

फारगती करती फकत, फोरी बातां फाक।
फेरी लूवां फांदलै, फीटौ करण फिराक।।733।।

ब्याज उगावण बोर गत, वांण फिरण बेपार।
आसांमी रै आवतां, लूवां बोरी लार।।734।।

बगसै झिलियां ना बखां, बरजै सुणै न बूंब।
बायड़ बावेलौ करण, लूवां बो'रो लूंब।।735।।

दीखै आमण दूमणौ, चांद ड़लौ नभ रूप।
लूवां कम मघसौ थयौ, संकै खिंवण सरुप।।736।।

रालै तपती रोहिणी, नखतर जेठ निसंक।
लू बिछमी रो लोगड़ा, डाडै लाग्या डंक।।737।।

इसड़ी धरती ऊपरा,ं लागी ग्रीखम लाय।
लपट आंच सूं मांनखौ, सगलै रह्यौ सिजाय।।738।।

आंधी
निजर न आवै रूंखड़़ा, पसर्या धोरा पर।
लहरां बणगी रेत में, हवा काज भरपूर।।739।।

लहरदार धोरा लखा,ं निजर पसार अलंघ।
मावै दरस मरीचिका, सागर जेम सेलंघ।।740।।

बाजै खातौ वायरो, उडै रेत असमांन।
किर किर भोजन ने करै, सावां में इण तांन।।741।।

ऊंची चढार चानणी, फाड़ै दै फटकार।
आंधी करै कनात नै, सावां पवन सवार।।742।।

मिरगा नखतर मुरधरा, आंधी चलण उडीक।
रगसै आगै रेतड़ौ, ठायौ धोरां ठीक।।743।।

बहवै सागै बायरै, रसा उडंती रेत।
जागां धोरा पलटतां, हवा दिखावै हेत।।744।।

कामू धर कब्जै करै, बदतौ रेगीस्तांन।
सर सर करतौ संचरै, तेज हवा री तांन।।745।।

ऊठ धारू आंधियां, मुरधर जबरी आय।
रुंक विहग रैवास नै, पूरी हांण पुगाय।।746।।

तीजौ पोरां छाय तम, आंधी कारण एम।
आंधल दिन ऊग्यां सरद, धुंद कारमै जेम।।747।।

उ़डीक
मेह बिना दुख जींवड़ां, भूखश डांगर वेत।
बाटां जोवै बांण री, खरणी करिया खेत।।748।।

अलख तणी आसा इला, आयौ अरध असाढ़।
मेहबिना इब मुरधरा, गलवै मिनखां गाढ।।749।।

गायां रांभै गौर मे,ं भेसं डिया अरडाय।
बिरका रै विसाव में, कमती कूतर खाय।।750।।

खाली बोगी धान बिन, लुण मरिरच ना तेल।
बिरखा बिना उधार में, मिलणौ ना असकेल।।751।।

मुरधर किरसांणां अरज, मेहा देवौ कांन।
मोत्यां मूंघौ मानंखौ, गमावै सांन।।752।।

ना बादल ना बीजली, नहीं गाज कसवाड़।
सूनौ आभौ सांझरा, मिटी मलुक मूंफाड।।753।।

किरसांणां रौ मेह बिन, बिगड़ै जीवण साव।
लाज रखवाण मुरधरा, अबतौ बिरखा आव।।754।।

जुगत
लवण अमल कटु रस जठै, उणदिस मती निहार।
कम खायां रूची मजुब, पड़सी ग्रीखम पार।।755।।

जौ जवांर गहूं अवर, साटी चावल भात।
अर हर मसूर खावणौ, मूंग मटर संघात।।756।।

पैठौ काची काकड़ी, करेलाज तरबूज।
तरावटी मीठै दहीं, आछी ग्रीखम बूझ।।757।।

सेवन करौ सराब ना, ना करणौ व्यायांम।
ग्रीखम रा दिन काढणा, मुरधर दोरौ कांम।।758।।

जल झरमै कूवां तमौ, खस चंदण रै मेल।
पीयां सायंत वापरै, आवै मीठी गेल।।759।।

लूवां सूं बचता रहौ, मत इब तावड़ जाव।
हाथां पंखी ताड़री, जल छिड़का'र फिराव।।760।।

झीणा कपड़ा पैरणौ, सेजां सुमन बिछाय।
अंगां करमओ ऊबटण, चन्दण लेप सवाय।।761।।

खांणौ कांदौ राबड़ी, आमलवाणौ और।
खस सिणियै टाटी लगा, जल छिड़कांणौ जोर।।762।।

बदलाव
वाधापौ विग्यान रौ, साधन किया सवाय।
कुदरत गत हांणी करै, परदूसण पसराय।।763।।

आदू साधन आपणा, मिनखां रह्यौ न मोह।
नव साधन हांणी नरां, अपणावण क्यूं जोह।।764।।

बेल्यां खेती बीसरै, उरां ट्रेक्टर आस।
भौैतिक साधन रा विलू, वन रौ करै विणास।।765।।

गोबर पोटा मीगंणी, खात न रालै खेत।
जबर डी ए पी यूरियै, करसां करियौ हेत।।766।।

कुदरत संसाधन करै, दोहन खोटौ लोग।
आयां तुठार तड़ फसी, जुड़सी हांणी जोग।।767।।

फेलै गेसां जहर री, उद्योगां घण आज।
हांी परियावरण री, परदूसण रै काज।।768।।

बेटरियां सीसा तणी, सीसा जुत पेट्रोल।
हरख हरख नै मांनखौ, मौत लेहर्यौ मोल।।769।।

कारखाना मीलां करै, गेसां धूवां गोट।
मरसी रिब रिब मांनखौ, दारूण दुख री दोट।।770।।

जल धल नभ गेसां जबर, परदूसण फेलाय।
हांणी परियावरण री, दिन दिन बढती जाय।।771।।

ताकत नाहंी धांनफल, बद नीती बड भूख।
गेसां जहरी कारणै, रोगी होसी रूंख।।772।।

जहरी गेसां जोर सूं, तिड़क रही ओजोण।
तप घम सूरज तावड़ै, खुसी मांनखै खोण।।773।।

मेह संतुलन बीगड़ै, सरद बिगाड़ै सीर।
तप रिव तेजी होवियां तड़फै मिनख सरीर।।774।।

परदूसण परभाव सूं, रुत गत डावां डोल।
चोल जोस मिट जावसी, मिनखां रहसी मोल।।775।।

पवन अगन नभ जल जमी, परदूसित घणमांन।
फल ससवादा ना रह्या, ना ससवादौ धांन।।776।।

परदूसण परभाव सूं, कुदरत बिगडै काज।
दिन दिन दीखै बदलतौ, मौसम तणौ मिजाज।।777।।

घटणा कुदरत सम्पदा, वन्य जीव हरमेस।
बदियौ माछर मांनखौ, धंध फंद बद गैस।।778।।

वन ओखद पैली जिसी, असर करै ना आज।
परदूसण परभाव सूं, बिगड़ रह्यौ सहकाज।।779।।

पन्ना 18

 

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